Monday, 1 December 2014

बुरें हैं कितनें हम के कोई मनानें नहीं आतें

बुरें हैं कितनें हम के कोई मनानें नहीं आतें
पूछतें हैं कई सवाल पर अपनानें नहीं आतें

क्या गलती,क्या दोष,क्या अपराध था मेरा
लगी हैं घर में आग, कोई बुझानें नहीं आतें

नाम का इश्तेहार में होना भी जुल्म हुआ हैं
फरिश्तों की हैं मार कोई दफ़नानें नहीं आतें

लो बोल ही दिया उसनें अब वो मुकम्मल हैं
मेरा होना ना होना,ये कोई मायनें नहीं आतें

नितेश वर्मा


बाहों में भरकर उसे इक किताब करता हूँ

आज उसके आँसूओं का हिसाब करता हूँ
बाहों में भरकर उसे इक किताब करता हूँ

प्यार पूछतें हो मेरें किनारें आकर मुझसे
मैं हूँ वो जो सूरज को आफताब करता हूँ

नितेश वर्मा

क्यूं जुबां दर्द की आँखें ये अब लिखती नहीं

क्यूं जुबां दर्द की आँखें ये अब लिखती नहीं
देखता हूँ आईनें में तो तकदीर दिखती नहीं

थक-हार के बैठ गया हैं मुसाफ़िर सुबह का
निकला था जिस राह,मंजिल पे मिलती नहीं

कब का टूट चुका हैं दिल मेरा ये आईनें का
बिखरें हैं अरमां मगर ये अब मचलती नहीं

बहोत दिनों बाद पायी फुरसत तो ये सोचा
क्यूं अपनों के साथें शामें ये अब ढलती नहीं

यकीं था इक दिन होगा शायद कुछ ऐसा ही
कहेंगें जब सब किताबें ये अब बिकती नहीं

नितेश वर्मा


बहोत हुई तकलीफ़ हैं आज उससे मुलाकात के बाद

बहोत हुई तकलीफ़ हैं आज उससे मुलाकात के बाद
उसकी आँखें अभ्भी नम हैं मुझसे मुलाकात के बाद

मैं तो हुई इन बारिशों में पसीनें से तर-बतर हुआ था
हालत अब तो ऐसी हैं जैसे बिछ्डन,मुलाकात के बाद

नितेश वर्मा

इन दर्द-आहटों के पीछें, इक तस्वीर हैं

इन दर्द-आहटों के पीछें, इक तस्वीर हैं
मुझमें बसी रही तो तेरी इक तस्वीर हैं

समझती रही थीं तो ये बारिशें कुछ और
चेहरें पे उसके अभ्भी तो इक तस्वीर हैं

कितना हसीं सफ़र तो था,रूखसत तक
अब तो नमीं से लगी,तो इक तस्वीर हैं

छोड आया हैं इश्क में वफा की निशानी
बची ये ज़िन्दगी तो अब इक तस्वीर हैं

नितेश वर्मा