बुरें हैं कितनें हम के कोई मनानें नहीं आतें
पूछतें हैं कई सवाल पर अपनानें नहीं आतें
क्या गलती,क्या दोष,क्या अपराध था मेरा
लगी हैं घर में आग, कोई बुझानें नहीं आतें
नाम का इश्तेहार में होना भी जुल्म हुआ हैं
फरिश्तों की हैं मार कोई दफ़नानें नहीं आतें
लो बोल ही दिया उसनें अब वो मुकम्मल हैं
मेरा होना ना होना,ये कोई मायनें नहीं आतें
नितेश वर्मा
पूछतें हैं कई सवाल पर अपनानें नहीं आतें
क्या गलती,क्या दोष,क्या अपराध था मेरा
लगी हैं घर में आग, कोई बुझानें नहीं आतें
नाम का इश्तेहार में होना भी जुल्म हुआ हैं
फरिश्तों की हैं मार कोई दफ़नानें नहीं आतें
लो बोल ही दिया उसनें अब वो मुकम्मल हैं
मेरा होना ना होना,ये कोई मायनें नहीं आतें
नितेश वर्मा