..कैसे हो जाता है रौशन घर एक दीये से..
..नाराज़ है हम-भी उनके उस किये से..
..सब मांग-मांग कर ले जाते है चराग़ मुझसे..
..अंधेरा रह जाता हैं घर मेरा मेरे किये से..
..आ जाओ कभी तो तुम्हें भी सीख देंगे हम..
..कैसे बनाते है सब घर हराम के किये से..
..इंसान-इंसान में बँट जाता हैं सामाज़ी-किताब..
..मरनें पर तो हो घर ऐसा जो हो सबके किये से..
..नितेश वर्मा..
..नाराज़ है हम-भी उनके उस किये से..
..सब मांग-मांग कर ले जाते है चराग़ मुझसे..
..अंधेरा रह जाता हैं घर मेरा मेरे किये से..
..आ जाओ कभी तो तुम्हें भी सीख देंगे हम..
..कैसे बनाते है सब घर हराम के किये से..
..इंसान-इंसान में बँट जाता हैं सामाज़ी-किताब..
..मरनें पर तो हो घर ऐसा जो हो सबके किये से..
..नितेश वर्मा..
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