Thursday, 7 August 2014

..मेंहदी हो जब.. [Mehndi Ho Jab]

निखर के रंग बखूबी आ जाती है लगी मेंहदी हो जब
दुल्हन की मांग भी सज जाती है हाथें मेंहदी हो जब

भगवान भी बताते है सुनो तो कैसे ग़िरफ़्त हुएं थे वो
मुहब्बत तो तब हुई थीं दिल-सुर्ख जुबाँ मेंहदी हो जब

मुहल्लें में भी वही बात दुहरायी जाती हैं न-जानें कबसे
कोई काम ना कराओ बहू लक्ष्मी है चढी मेंहदी हो जब

आज़ भी खुद को फूँक जिसनें हैं घर का चूल्हा जलाया
रो-रोकर कहती हैं नोंच लो दिखे कही ग़र मेंहदी हो जब

दरिन्दे हो चले हैं ये पुजारी पुरानें हुकमत क्या करेंगे
कहते है पूछेगा इन्हे कौन काँटों से भरी मेंहदी हो जब

मैं नहीं मानता अब तेरा कहना तु भी वही रहा वर्मा
शरम तुझे कहाँ थीं जली पत्ती बच्ची मेंहदी हो जब

नितेश वर्मा

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