Sunday, 3 August 2014

..तैरता रहा.. [Tairta Raha]

बचपन में जो बनाएं थें नाव बारिशों के
ज़िन्दगी आज़ भी कश्मकश में तैरता रहा

खरीदों हर जगह जो वो बिकता रहता हैं
लालच ये कैसा आँखों में आज-तक तैरता रहा

हर फूल को छूकर जो हाथ गुजर जाते हैं
ज़िस्म की सिहरन मेरी बातों पे तैरता रहा

माँग ले खुदा से हर इक मुशक्कत की दवा
क्यूं नेकी फेंके दरिया में जो उपर तैरता रहा

परिंदों का भी तो कोई घर हो सुनहरी-इमारती
इक सुबह से शाम जो आसमानों में तैरता रहा

थक चुकी हैं ज़ान ना सही ज़िस्म ही मेरे आका
रिहा करो इन गुनाहों से मुझे जिससे मैं तैरता रहा

नितेश वर्मा

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