देश-भक्त हो जाता है दिल कभी-कभी.. हालातें, बाते, समझौते इस सोचनीय स्थिति पर आकर कभी-कभी रूक जाती है। कौन अपना हैं कौन पराया। आखिर इंसानियत ही है तो हमारें अंदर फिर ये विवाद, उल्झनें, समस्याएँ क्यूं? क्यूं हर बार का वही अपराध और वही निदान। दस इधर से दस उधर से। मरते और मारतें-मारतें क्या मुल्क अभी तक थका नहीं या फिर उनकें आँसूओं को अभी तक सुकूँ नहीं मिला। हर बार की प्रतिशोध में इक मासूम की मौत। क्या सीमा पे खडे सैनिकों की जान इतनी सस्ती हैं। रात-भर उन्हें सुकूँ नहीं, आँखों की नींद ना जानें कबकी खो गयी हैं.. अपनों से दूर होकर देश-सेवा.. नमन है उनको। क्या आखिर ये बलिदान के किस्सों तक ही सीमित रह गए हैं। मुझे ना अपनें और ना ही दूसरें देशों की प्रशासन और अर्थवयस्था की जानकारी हैं यानी की मैं बिना कुछ जानें यह सब लिख रहा हूँ। यदि उनकी तरफ उँगली करू तो यह बात बजारू हो जाऐंगी और ना करूं तो हास्योपद या मनोरंजक। शर्मं सी आती है खुद के होनें पर। दिल भरा-भरा सा है इसलिए आवाज़ में इतनी खरास नज़र आ रही हैं।
..हर मुश्किल..
..आसां कर जाऐंगे..
..ग़र आग का दरिया है..
..तो तैर के जाऐंगे..
..हमनें कभी..
..ना रूकना है सीखा..
..समुन्दरों से..
..बारिश कर जाऐंगे..
..उडते परिंदों के भी..
..है पर गिन लेते..
..सिकन्दर की बात..
..तुम्हें फिर समझा जाऐंगे..
..हमनें उडना है सीखा..
..हवाओं को अपना..
..गुलाम कर जाऐंगे..
..शातिर हमसे बडा..
..कोई और ना है..
..हम भरी महफिल में..
..राज़ कह जाऐंगे..
..उम्मीदों के आगे..
..और क्या है..
..अपनी आवाज़ से..
..हिन्दोस्तां कह जाऐंगे..
..हर मुश्किल..
..आसां कर जाऐंगे..
..ग़र आग का दरिया है..
..तो तैर के जाऐंगे..
..नितेश वर्मा..
..हर मुश्किल..
..आसां कर जाऐंगे..
..ग़र आग का दरिया है..
..तो तैर के जाऐंगे..
..हमनें कभी..
..ना रूकना है सीखा..
..समुन्दरों से..
..बारिश कर जाऐंगे..
..उडते परिंदों के भी..
..है पर गिन लेते..
..सिकन्दर की बात..
..तुम्हें फिर समझा जाऐंगे..
..हमनें उडना है सीखा..
..हवाओं को अपना..
..गुलाम कर जाऐंगे..
..शातिर हमसे बडा..
..कोई और ना है..
..हम भरी महफिल में..
..राज़ कह जाऐंगे..
..उम्मीदों के आगे..
..और क्या है..
..अपनी आवाज़ से..
..हिन्दोस्तां कह जाऐंगे..
..हर मुश्किल..
..आसां कर जाऐंगे..
..ग़र आग का दरिया है..
..तो तैर के जाऐंगे..
..नितेश वर्मा..
No comments:
Post a Comment