Tuesday, 19 August 2014

सिसकियाँ [Siskiyan]

घर के इक-कोनें से चली आती है सिसकियाँ
परेशां हो दिल तो निकल आती है सिसकियाँ

मासूम सी तेरी इक तस्वीर लिये जिंदा हूँ
तू ना दिखे तो निकल आती है सिसकियाँ

पूछते हो क्या आखिर रूठा-रूठा सा क्यूँ हूँ
मौत आती है तो निकल आती है सिसकियाँ

ज़ंगलों में भी अब सूखा-पड आया हैं क्या
आँखें उदास हो तो निकल आती है सिसकियाँ

मेरे-बहानें तुम अब ये समझौते ना किये फिरों
सयाने जो मिलते है निकल आती है सिसकियाँ

भला अभ्भी-तू उसकी इंतज़ार का कायल है वर्मा
अब तो हिचकियों पे भी निकल आती है सिसकियाँ

नितेश वर्मा

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