Friday, 1 August 2014

..कैसे लायें.. [Kaise Layein]

..आँखों में मुहब्बत अब कैसे लायें..
..घर उजडा हैं चादर कैसे लायें..

..बच्चें माँगते नहीं ले लेते हैं..
..जायदाती हिस्सा हैं समझ कैसे लायें..

..फूलों के बाग़ मुरझा जातें हैं..
..माली था जो खानदानी कैसे लायें..

..पीकर भी नशें में ना-चूर हुआ..
..घर अफ़ीम की खेती कैसी लायें..

..बतातें जो सब सजदें हो आता..
..दरहो-हरम उठा अब के कैसे आयें..

..फलता-फूलता रहता हैं यह मकाँ पुराना..
..यादें जो हो ज़ज्बाती कैसे लायें..

..आग़ में ज़ला सब खाख हुआ..
..सजाकर रखे कहानी हम कैसे लायें..

..दो बूंद मिलता बुझा लेते हम..
..लगी हैं आग समुन्दर कैसे आयें..

..नितेश वर्मा..


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