Saturday, 9 August 2014

..कर रक्खी है.. [Kar Rakkhi Hai]

यादें शहर की अभ्भी रू-ब-रू कर रक्खी है
तेरा हो जाऊँ गाल पे हाथें कर रक्खी है

बिखेरतें समेटतें चले जाऐंगे पन्नें हम
ईश्क में तेरे एक तस्वीर कर रक्खी है

मिला जो था ही कहाँ हम नाशुक्रा निकले
समेट दर्द को हमनें पहाडें कर रक्खी है

भूला दिया था हमनें कहाँ कभी पता तेरा
कहनें की बात थीं नज़रें आज़ भी कर रक्खी है

नितेश वर्मा

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