Saturday, 2 August 2014

..कैसी है यादें.. [Kaisi Hai Yaadein]

कैसी है यादें
सताती हैं

उमर गुजर जाती है
आँखें ठहर जाती हैं
बनाना था जिसे मुक्कदर
एहसासों से दब जाती हैं

खिलौनें की खेल रह जाती हैं
बच्चों की भी ज़िन्दगी
अब उल्झ जाती हैं
जब से जन्मा
काम ही काम देखा था
हँसाता कोई
हैं तो ये ज़िन्दगी ही
मुश्किलों से ही क्यूं हर-बात हैं
समझ आया कहाँ हैं
तुम तो उल्झें ही रह गए
ता-उम्र
तुमनें कुछ बताया ही कहाँ हैं


मेरे हर दर्द के आगें
आओगे तुम
महज़ बातों से
वो कतराया क्यूं हैं
परेशां ही रहना था
तो मौत से ज़िन्दगी
जिन्दगी से मौत
रास्ता ये अपनाया क्यूं है
बहोत साणां है
कुत्ता पुराना
मेरें बातों पे
वो मुस्कुरायां क्यूं हैं
ज़िन्दगी क्या यही
सिमट के रहनें का नाम हैं
डर ही डर क्या
यही मुकाम हैं
हारें तो हार जाते हम
जीत के कौन सा
ज़न्नत नसीब हैं
सीखाया होता
किसी गुरू ने भी कभी
ये मूल्यों को दिखाया होता
रूपयों से उपर कभी
हम भी उनकी हुनर का
रखते बखूबी ख्याल
दिखाया होता
ज़िन्दगी में कुछ सुकूँ का मकान

हम तो हार ही गये
ये ज़िन्दगी पुरानी
कहानी ही कहानी
नाम कहाँ हैं
सारें मसले हो गये
सियासती हैं
तुम किसके हो
समझ आया नहीं है
यादें है
ऐसी उल्झी बेकसक पडी
नई किताब हो 
जैसे धूल से भरी पडी
अब कोई दवा नहीं हैं
ज़िन्दगी हैं दारू
पीना भी हैं
जीना भी हैं
और मरना
ये भी कानून जारी हैं

कैसी है यादें
सताती हैं

उमर गुजर जाती है
आँखें ठहर जाती हैं
बनाना था जिसे मुक्कदर
एहसासों से दब जाती हैं

नितेश वर्मा

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