Sunday, 3 August 2014

..मरें भाई-भाई होता हैं हिन्दु-मुस्लमान तो होनें दो..

..होता हैं ग़र नाराज़ तो उसे होनें दो..
..इस मुहब्बत को बेग़ुनाह भी तो होनें दो..

..मेरें हिस्सें में भी धूप का इक कोना हो..
..ग़र होता है ज़मींदार नाराज़ तो होनें दो..

..ले आऐंगे घसीट के समुन्दर प्यासें हैं जो हम..
..मेरें इरादों से खफ़ा गर होता हैं खुदा तो होनें दो..

..चलता रहेगा हमेशा ऐसे ही यह सामयिक चक्र पुराना..
..मरें भाई-भाई होता हैं हिन्दु-मुस्लमान तो होनें दो..

..होता हैं ग़र नाराज़ तो उसे होनें दो..
..इस मुहब्बत को बेग़ुनाह भी तो होनें दो..

..नितेश वर्मा..

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