पत्थर चोट और दिल की खराश
ईश्क में हुएं कैसे दो-दिल बर्बाद
थामां दामन और सँभाली हर जुबां
रिश्तों में लगा कैसे मतलबी धुंआ
शहर नया और परदेशी चेहरें सभी
हुआ कत्ल और निकले अपने सभी
खामोश हर्फ और बेबस इंसा लगे
अपराध में फँसे तो जाँ-से-जाँ लगे
दिल बिखरा तो लगी ये हैंरत कैसी
टूटना ही था टूटे कोई वजह कैसी
आज़माईश की अब ना ये दौर है
अपने लिये है खंज़र यही शोर है
नितेश वर्मा
ईश्क में हुएं कैसे दो-दिल बर्बाद
थामां दामन और सँभाली हर जुबां
रिश्तों में लगा कैसे मतलबी धुंआ
शहर नया और परदेशी चेहरें सभी
हुआ कत्ल और निकले अपने सभी
खामोश हर्फ और बेबस इंसा लगे
अपराध में फँसे तो जाँ-से-जाँ लगे
दिल बिखरा तो लगी ये हैंरत कैसी
टूटना ही था टूटे कोई वजह कैसी
आज़माईश की अब ना ये दौर है
अपने लिये है खंज़र यही शोर है
नितेश वर्मा
No comments:
Post a Comment