Tuesday, 19 August 2014

Nitesh Verma Poetry

मिला जा के सुकूँ इसे तेरे इक हँसी मुस्कान में
था बेसबर भटकता लेके जो ये दिल आसमान में

तेरे ही लब से ये बरसता हैं संग-ए-मरमर सा
खुली जो आँख निकल आई तुम मेरे पहचान में

बिठा के रक्खा था हर अपने को इक कतार में
साथी, हमराज़ी, हमदर्द, हमदम कानी शान में

बुला के सबने दिखा भी दिया मेरे हक में नहीं
मैं यूं ही जीता रहा शान-ए-शौकत कब्रिस्तान में

नितेश वर्मा

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