मिला जा के सुकूँ इसे तेरे इक हँसी मुस्कान में
था बेसबर भटकता लेके जो ये दिल आसमान में
तेरे ही लब से ये बरसता हैं संग-ए-मरमर सा
खुली जो आँख निकल आई तुम मेरे पहचान में
बिठा के रक्खा था हर अपने को इक कतार में
साथी, हमराज़ी, हमदर्द, हमदम कानी शान में
बुला के सबने दिखा भी दिया मेरे हक में नहीं
मैं यूं ही जीता रहा शान-ए-शौकत कब्रिस्तान में
नितेश वर्मा
था बेसबर भटकता लेके जो ये दिल आसमान में
तेरे ही लब से ये बरसता हैं संग-ए-मरमर सा
खुली जो आँख निकल आई तुम मेरे पहचान में
बिठा के रक्खा था हर अपने को इक कतार में
साथी, हमराज़ी, हमदर्द, हमदम कानी शान में
बुला के सबने दिखा भी दिया मेरे हक में नहीं
मैं यूं ही जीता रहा शान-ए-शौकत कब्रिस्तान में
नितेश वर्मा
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