घुट-घुट के जो गुजर रही है ज़िन्दगी
तुम ना थी तभ्भी ग़रीब थीं ज़िन्दगी
तुम्हारें हिस्से से सब थोडे हुआ है ना
तुम ना थी तभ्भी परेशां थी ज़िन्दगी
तुम मिले तो कुछ अज़ीब सा हुआ था
खुशी बे-हिसाब और अमीर थी ज़िन्दगी
बिछड के जो तुम चली गयी मुझसे
खाली खामोश भरी रही ये ज़िन्दगी
मुन्तज़िर था ना-जानें कबसे दीदार को
बिन-तेरे लगती है उधार थीं ज़िन्दगी
समझ के आ गए है सब होश वर्मा
लगाई थी जो आग़ बुझाई पूरी ज़िन्दगी
नितेश वर्मा
तुम ना थी तभ्भी ग़रीब थीं ज़िन्दगी
तुम्हारें हिस्से से सब थोडे हुआ है ना
तुम ना थी तभ्भी परेशां थी ज़िन्दगी
तुम मिले तो कुछ अज़ीब सा हुआ था
खुशी बे-हिसाब और अमीर थी ज़िन्दगी
बिछड के जो तुम चली गयी मुझसे
खाली खामोश भरी रही ये ज़िन्दगी
मुन्तज़िर था ना-जानें कबसे दीदार को
बिन-तेरे लगती है उधार थीं ज़िन्दगी
समझ के आ गए है सब होश वर्मा
लगाई थी जो आग़ बुझाई पूरी ज़िन्दगी
नितेश वर्मा
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