Saturday, 9 August 2014

..नफ़रतें करतें.. [Nafratein Kartein]

बिछुडतें चले गए हम जग से नफ़रतें करतें
कोई समझ ना रहा जीतें रहें नफ़रतें करतें

कैसे भूला दिया होता तुम्हारी उन तस्वीरों को
ज़िंदा रहतें थें देख जिन्हें हम नफ़रतें करतें

सुबह से शाम हो गयीं बदनेकियाँ तो देखो
सूरज अभ्भी हवाओं से ख़फ़ा हैं नफ़रतें करतें

फ़कीर के हुज़रें की तलाशी लिए फिरते हो
कमबख्त हुआ हैं क्या इमान को नफ़रतें करतें

तुम कौन-सा खुदाया जा के दुआएं माँगा करते हो
मासूमियत की लिबास ओढें फिरते हो नफ़रतें करतें

कुछ होता हो तो बताओं इनका अए वर्मा
ज़िन्दगी मिट्टी में मिलनें वाली है नफ़रतें करतें

नितेश वर्मा

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