Sunday, 10 August 2014

..जिधर.. [Jidhar]

चला जा रहा है इंसान जिधर
बताया था वो रस्ता बदनाम जिधर

मुँह के निवालों की फिकर कहाँ
बच्चें हैं निकले काम हो जिधर

धीरें-धीरें ही चले थें शहरी सयानें
जाकर रूक गये मिलें अपनें जिधर

नाम-तो नही लूँगा लेकिन कहता हूँ
मिलतें है सब बडी-कीमत हो जिधर

इन-मकानों का क्या किये फिरते हो
मिलना है उधर दो-गज़ मिट्टी जिधर

क्या करें सब हाल-ए-बयां कर वर्मा
मिलता है दो-दिल दिल हो जिधर

नितेश वर्मा

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