Saturday, 2 August 2014

..चार लोग.. [Chaar Log]

बहसों से परें हो तो अच्छा नहीं लगता। अगर चार लोग बातें ना सुने तो अच्छा नहीं लगता। भडकाऊँ और अश्लील शब्दें भी कभी-कभी जरूरतें बन जाती हैं, कुछेक को बातें उसी रूप में समझ आती हैं या समझायी जा सकती हैं जिसकी भाषा वो बोलते हैं। अज़ीब दौर है सब अच्छें हैं मगर चारों तरफ़ रंजिशे हैं। जमाना टेक्निकल है चार लोग चारों दिशा में घिरें पडे हैं। काम, मुश्किलात, विवाद, सुलझ, हिंसा, रूकावट चाहें जो हो चार लोग तो होते ही हैं।

चार लोग कहते हैं कॉमनवेल्थ गेम्स गुलामी का प्रतीक है,चार लोग कहते हैं भारत में खेलों की दुर्दशा क्यों है? चार लोग कहते हैं खिलाडियों के लिए कुछ करते नही। चार लोग कहते हैं फलानी खिलाडी फलानिस्तानी है। चार लोग कहते हैं एक पदक लाने वाले शूटर को करोडों और सरहद पर खड़े होने वाले को कुछ नही। चार और लोग हैं जो कहते हैं,कब तक सहोगे,हमला क्यों नही करते? चार लोग कहते हैं युद्ध क्यों? युद्ध विभीषिका है। चार लोग ईराक पर रोते हैं,चार फिलिस्तीन पर,चार को गाज़ा दिखता है,चार कहते हैं इजराईल सा बनो,और चार वो हैं जो गाज़ा पर कहने वालों को कहते हैं इराक पर कुछ कहो।

चार लोग चार अलग-अलग चीजों को एक साथ लाकर जस्टीफाई कर सकते हैं,दो ऐसी चीजों को जोड़ सकते हैं जिनका मेल ही नही।

..सबसे बडा रोग..
..आखिर क्या कहेंगे..
..चार लोग..

..नितेश वर्मा..

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