Sunday, 31 August 2014

अच्छा लगा [Achha Laga]

हुआ दिल परेशान तो आँखों में आँसू अच्छा लगा
जैसे कडी धूप में था तो हुआ बारिश अच्छा लगा

सब संग-ए-मर-मर की तालाश में निकलते गए
मगर मुझे तो वही मेरा इक मकाँ अच्छा लगा

दौलत के नशें में चूर सब खून-खराबें को उतर आए
मगर माँ की थीं जो नसीहत वही मुझे अच्छा लगा

अब क्या परहेज़ करके रक्खूं ख्याल अपना ही मैं
ग़र घुट-घुट के जीना हो तो मरना ही अच्छा लगा

सौ बार कहकर जो जुबाँ से पलट कर निकले अपनें
इस ग़म में चेहरें पे खिला मुस्कान तो अच्छा लगा

आशिकों की महफिल से गुजर के अब क्या देखना
तिरंगें में लिपटा हो लाश ख्वाब इक ये अच्छा लगा

नितेश वर्मा


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