हर हँसी रात इक ख्वाब सी लगी
तेरी हर साथ भी खरास सी लगी
दुनिया बदलने को चला था मैं
और रिश्तेदारों की परवाह लगी
मुठ्ठी से रेंत गिरके सँभल से गए
समुन्दर को खुद की आह लगी
हो जो इक कशिश आँखों में मेरे
मुझे दर्द में भी तेरी फरियाद लगी
हैं छुपा कहाँ मेरे कत्ल का सामान
खंज़र तो मुझे मीलों दूर की लगी
सीनें में बस इक ही बात थीं खली
क्यूं बेवजह जमानें की लात लगी
नितेश वर्मा
तेरी हर साथ भी खरास सी लगी
दुनिया बदलने को चला था मैं
और रिश्तेदारों की परवाह लगी
मुठ्ठी से रेंत गिरके सँभल से गए
समुन्दर को खुद की आह लगी
हो जो इक कशिश आँखों में मेरे
मुझे दर्द में भी तेरी फरियाद लगी
हैं छुपा कहाँ मेरे कत्ल का सामान
खंज़र तो मुझे मीलों दूर की लगी
सीनें में बस इक ही बात थीं खली
क्यूं बेवजह जमानें की लात लगी
नितेश वर्मा
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