इस ग़म में भी जीएं तो अब क्या जियें
अपना कोई रहा नहीं अब हम क्या कहें
वो जो अपनी नफ़रत जता कर चले गए
दिल बेचैंन ना-जानें क्यूं मनाते रह गयें
उनकी सितम, उनके वादें और उनके इरादें
क्यूं ना समझ हम उनको उठातें चले गयें
लौट के आया ही था सुबह का भूला वो इंसा
कमरें का आईना उसे आँसू दिखातें रह गयें
सब देख कर भी वो अब तक खामोश हैं रहीं
और इल्ज़ाम सब उसके सर गिनातें रह गयें
हैंरा हैं अब तक मेरी की उम्मीदों की हर रातें
नसीब कैसा जो लोग ज़िन्दा जलातें रह गयें
नितेश वर्मा
अपना कोई रहा नहीं अब हम क्या कहें
वो जो अपनी नफ़रत जता कर चले गए
दिल बेचैंन ना-जानें क्यूं मनाते रह गयें
उनकी सितम, उनके वादें और उनके इरादें
क्यूं ना समझ हम उनको उठातें चले गयें
लौट के आया ही था सुबह का भूला वो इंसा
कमरें का आईना उसे आँसू दिखातें रह गयें
सब देख कर भी वो अब तक खामोश हैं रहीं
और इल्ज़ाम सब उसके सर गिनातें रह गयें
हैंरा हैं अब तक मेरी की उम्मीदों की हर रातें
नसीब कैसा जो लोग ज़िन्दा जलातें रह गयें
नितेश वर्मा
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