मेरे हाथों में जो वो हाथ डाल देता हैं
कितना खुबसूरत एहसास डाल देता हैं
मैं पतंग की डोर में इक गांठ सा हूँ
वो मांझे में मुझकों कैसे डाल देता है
नाम लेना मुश्किल हैं मेरा जमानें में
वो एतिहातन कागज में डाल देता है
हर्श की फिक्र फिर से सताती रही हैं
ख्याल ये सीनें में खंजर डाल देता है
रूठ के जो ये तुम मुझसे बेगानी रही
ईश्क में ये सबक खलल डाल देता हैं
फिर से वही बात दुहराई हैं मैनें वर्मा
जैसे चोर दरवाजें पे रोटी डाल देता हैं
नितेश वर्मा
कितना खुबसूरत एहसास डाल देता हैं
मैं पतंग की डोर में इक गांठ सा हूँ
वो मांझे में मुझकों कैसे डाल देता है
नाम लेना मुश्किल हैं मेरा जमानें में
वो एतिहातन कागज में डाल देता है
हर्श की फिक्र फिर से सताती रही हैं
ख्याल ये सीनें में खंजर डाल देता है
रूठ के जो ये तुम मुझसे बेगानी रही
ईश्क में ये सबक खलल डाल देता हैं
फिर से वही बात दुहराई हैं मैनें वर्मा
जैसे चोर दरवाजें पे रोटी डाल देता हैं
नितेश वर्मा
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