Saturday, 13 September 2014

कहता हैं [Kahta Hai]

मुझसे ही मेरा अक्स अब कुछ कहता हैं
करूं सौ सवाल तो इक जवाब कहता हैं

बदल गई हैं मेरी बे-लगाम नज़र मासूम
मेरे कमरें का कोना ये मलाल कहता हैं

हाथों में खन्ज़र और चेहरें पे करके फरेब
और वो सियासती मुझको गद्दार कहता है

खुद पे जो बीता उसे अब-तक याद रहा हैं
जो मेरी तिश्नगी को अब सराब कहता है [तिश्नगी=प्यास] [सराब= मृगतृष्णा]

देश के नाम पर मिटकर जो शहीद हैं सब
जमाना उन्हें आज बस बदनाम कहता हैं

नितेश वर्मा

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