Friday, 19 September 2014

क्यूं जीयां हैं [Kyu Jiya Hai]

नाउम्मीद होकर भी जो जीयां हैं
बिन मक्सद भी वो क्यूं जीयां हैं

धूल गए हैं जो सब चेहरें बेंरग तेरे
कश्ती से तू समुन्दर क्यूं पीया हैं

मेरा जां लेना ना था बस का तेरे
तू ये समझा तो अबतक जीयां हैं

मग़र आँखें तेरी आज़ भी खामोश
तेरी लफ़्ज़ों को अब ये क्या हुआ हैं

बिछडता बस एहसास हैं दिल में
नम ज़िन्दगी अबतक क्यूं किया हैं

नितेश वर्मा

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