यह उम्र अब मुझपें कितनी भारी हैं
बिन तेरे तो अब यें जां भी हारी हैं
संभाला जाता नहीं आँखों का दरियां
यें इक कतरा हैं जो बेहोशी तारी हैं
बना लिया जो मैनें फिरसे मकाँ वहीं
रूठां हैं जैसे की कोई फतवा जारी हैं
माँगता था जो दानें बिन आहटों के
परिंदा सहमा हैं जैसे अबला नारी हैं
चैंन नहीं उसे इक पल का भी यहाँ
बेवजह उसनें कही हैं बातें सारी हैं
नितेश वर्मा
बिन तेरे तो अब यें जां भी हारी हैं
संभाला जाता नहीं आँखों का दरियां
यें इक कतरा हैं जो बेहोशी तारी हैं
बना लिया जो मैनें फिरसे मकाँ वहीं
रूठां हैं जैसे की कोई फतवा जारी हैं
माँगता था जो दानें बिन आहटों के
परिंदा सहमा हैं जैसे अबला नारी हैं
चैंन नहीं उसे इक पल का भी यहाँ
बेवजह उसनें कही हैं बातें सारी हैं
नितेश वर्मा
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