Saturday, 13 September 2014

लिखना [Likhna]

पहलें लिखना एक शौक था.. फिर आदत सी बन गयी कुछ इसकी.. धीरें-धीरें ये एक काम सा लगनें लगा.. अब तो हालात कुछ ऐसी हो गयी हैं की लिखना बस एक मजबूरी बन के रह गयी हैं.. ना ही मुझमें ही कुछ ऐसा बचा हैं और ना ही जमानें में जो फिर से एक शौक सा लगें।
बस हर दिन एक रात का इंतजार.. आपका इंतजार..
फुरसत में ही तो कुछ बातें की जा सकती है.. आपकी राय मेरी लेखनी में स्याहीं का काम करती हैं। आप सदा ऐसे ही मुझसे और मेरी जिन्दगी में बनें रहें।

रोज-रोज की वहीं शायरी और वही ग़ज़ल सोचा आज कुछ बातें ही करता चलूं। आखिर एक पहचान भी तो होनी चाहिएं। आप मुझसे कुछ जानना चाहतें हो तो नि:संकोच पूछ सकते हैं।

नितेश वर्मा

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