Saturday, 13 September 2014

चेहरा [Chehra]

हरेक इंसान के ज़िन्दगी में एक ऐसा चेहरा होता हैं जो उसके सुकूं, उसके रूह, उसके आत्मीयता से जुडा हुआ होता हैं। वो उस चेहरें में इक मदहोशी, इक कामयाबी, इस मंज़िल, इक प्यार को पाता हैं। या यूं कहें तो वो उसे अपनी ज़िन्दगी मान बैठता हैं। चेहरा किसी का भी हो सकता हैं। रूप बदल सकते हैं लेकिन मायनें तो बस वही रहता हैं जो एक दिल को दूसरें दिल से जोड दें। भावुकता एक अलग विचार हैं और प्रेम अलग। चेहरें से ही प्यार और नफरत होती हैं। चेहरा ही इक आईना और इक माध्यम हैं जो मनुष्य के विचार को प्रदर्शित करती हैं। मन भावनाएं को साकार एक चेहरा ही करता हैं। यहाँ तक तो इंसान भगवान को ही एक काल्पनिक रूप में स्वीकार करता हैं जबकि उसनें ना कभी उन्हें देखा हो। यहीं तक सोच हैं शब्दों को यहीं तक बाँधनें की क्षमता क्यूंकि भगवान से आगें की कोई बात हो तो वो मेरी पहोच से काफी दूर हैं जो मैं इस ज़िन्दगी में तो नहीं पा सकता।

बदलना चाहा था
अब तक जिस चेहरें नें
डूबा हैं वो खुद
अब तक इक चेहरें में
कोई नमीं रही नहीं
बची इन आँखों में
खुदा कैसे पत्थर में
ढूँढतें कोई चेहरें तेरे
मैं मुक्कमिल था शायद
आईना ही शराबी निकला
बेपरवाह झूमतां हैं
बाहों में लिये सपनें कई
कैसे रंग रंगता हैं
चेहरों पे भी चेहरें
कोई कैसे रखता हैं
पुराना गर मेरा तस्वीर हुआ
कोना तो सही
मगर उसे नसीब तो कुछ हुआ
बदलनें लगे है अब तो
आँखों से किये इशारें भी
चूमतां था जो लब
जलनें लगे हैं उफ्फ!
समुन्दर के लहरों से भी
बदनसीब हारेगा
करनें दो मन की मर्जी उसे
परवाह नहीं कोई इतंजार नहीं
मुहब्बत हैं क्या कोई एतबार नहीं
मैं तो ना अब कुछ कहूँगा
इसे जब खुद
इसे खुद का ख्याल नहीं
चेहरा उदास हैं
मगर दिल की बात हैं
तो वो भी बेपरवाह हैं
सुनें भी तो कौन
अब इसे पढें तो कौन
चेहरा ही हैं दिखे भी तो क्या
जो गम में रहें
यादों से कहा तो सही
अब जुबां से कौन कहें
बंद कर दी तलाश वहीं
मुहब्बत में लगी थीं
कैसी बिन बुझी वो आग
आज भी सताया हैं
दिल को फिर से
जब वो चेहरा याद आया हैं
जब वो चेहरा याद आया हैं।

..नितेश वर्मा..

No comments:

Post a Comment