Sunday, 28 September 2014

लिक्खें जाऐंगे [Likhhe Jayenge]

इन्तकाम पे जो सब उतर आयेंगे
इंसान अबके हैवान ही कहे जाऐंगे

मन किस कदर रूठा है सबका यहाँ
हिसाब अब सब यहाँ लिक्खें जाऐंगे

जो होना था हो चुकां सब यहाँ मेरा
दुश्मनी ही सहीं अब निभाएं जाऐंगे

कितना कमज़र्फ़ निकला मन मेरा
मुद्दतों तक ये जुबाँ सताएं जाऐंगे

अब ना की हैं उसने कोई फरेबी वादें
फिर भी वो शायद कहीं मुकर जाऐंगे

वो आसमां से सफ़र कितना सुहाना था
ख्वाबों में फिर वो शक्ल बनाएं जाऐंगे

नितेश वर्मा

No comments:

Post a Comment