Monday, 25 August 2014

शर्म नहीं [Sharm Nahi]

मुज़रिम के आँखों में शर्म नहीं
ये ज़माना मेरा अब हमदर्द नहीं

मैं भूल गया जिस तस्वीर को
वो हुआ दीवार में नर्म नहीं

पत्तें भी टूट के बिखर गए
समाजी आग थीं मेरी धर्म नहीं

अब जो सोया मौत ही मिलेगी
अपना छूटा बची कोई फर्ज़ नहीं

नितेश वर्मा

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