Saturday, 7 December 2013

..वो बताऐंगे कभी मुझे तो मैं बताउँगा कभी तुम्हें..!

..मेरी सारी बातें जो मैनें लिख्खे थे..
..तुम्हें बताने को सुनाने को दिखाने को..
..आज़ वो बिखरतें जा रहे है..
..उल्झते जा रहे है..
..जैसे सावन के बीच काली घटाओ का होना..
..आँधियों के बीच पत्तियों का रोना..
..सारी समेटी थी ज़िन्दगानी जो मैनें खातिर तुम्हारें..
..पता ना क्यों?


..आज़ वो पुरानी-धूमिल सी होती जा रही है..
..आखिर हुई मुझसे ऐसी क्या खता..
..जो मेरी उडती जा रहीं हैं ख्वाबों की आशियाँ..
..हैं कोइ बात ऐसी ही..
..जो मेरी हालातों की तरह होंगी..
..जिसे सुन वो सब अपनी राहें मुड गए होंगे..
..मेरी खताएँ मेरी हालातें मेरी सारी परेशानियाँ..
..मेरे ही हिस्सें की सारी बातें हैं..
..दूसरी तरफ से तो मेरे लिए कोइ ज़िक्र ही ना था..
..शायद वो सुनना ना चाहते हो..
..समझना ना चाहते हो..
..मेरी बातों मेरी हालातों को..
..या फिर हो शायद कोई और बात..
..जो हो बडी मुझसे बहोत बडी..
..वो बताऐंगे कभी मुझे तो मैं बताउँगा कभी तुम्हें..!

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