Friday, 19 June 2015

क्यूं यूं ही दिल इश्क मेरा दुखाता रहा

कुछ और ही अफसानें वो बताता रहा
क्यूं यूं ही दिल इश्क मेरा दुखाता रहा

मैं तो तन्हाईयों में भी ज़िंदा रह लेता
मग़र वो खुद मुझे अपना बताता रहा

सब सुकून की तालाश में दौड रहे थें
मेरे घर का कमरा मुझे बुलाता रहा

मैं भी तो इसी भ्रम में जी रहा कबसे
मिलाकें नज़रें वो मुझसे झुकाता रहा

दो-दो पल चुराया था ज़िंदगी से मैनें
और ये मौत हक मुझपे जताता रहा

नितेश वर्मा


दिल को अब आराम कहाँ होता हैं

दिल को अब आराम कहाँ होता हैं
ये यूं ही अब बेज़ुबाँ बेजुबाँ होता हैं

नितेश वर्मा और आराम।

ये आवाज कब तक होती रहेगी

ये आवाज कब तक होती रहेगी
तू बर्बाद कब तक होती रहेगी।

नितेश वर्मा

कितना गुनाह वो करेगा

इसका हिसाब वो करेगा
कितना गुनाह वो करेगा

कहीं और छुपा लेना तुम
दिली बात जब वो करेगा

नितेश वर्मा

दरियाँ से जो पानी वो हटातें रहें

कुछ और ही बातें वो बतातें रहें
आ के करीब भी वो सतातें रहें

जुल्फों को सुल्झाकर आएं जब
बेपरवाह ही सब वो ठुकरातें रहें

खुद को समझ लेना चाहते थें
दरियाँ से जो पानी वो हटातें रहें

किसी के ख्याल का जिक्र हैं
सारी रात वो मुझे सुलझातें रहें

मैं अब बस बर्बाद होनें को ही हूँ
फिर भी मुझे क्यूं वो दफनातें रहें

नितेश वर्मा

मुझे भी यकीन हैं उसके आने की

मुझे भी यकीन हैं उसके आने की
ये बारिश ठहरी जो नहीं हैं अब तक।

नितेश वर्मा और बारिश

फिर से वही कुछ दुहराने को हैं

फिर से वही कुछ दुहराने को हैं
मुझे फिर से गलत ठहराने को हैं।

नितेश वर्मा

हर वक्त उसका वहीं रोना हैं

हर वक्त उसका वहीं रोना हैं
मेरा अब कहाँ कुछ होना हैं।

नितेश वर्मा

किसी को कहाँ कुछ दिखाने की चाह हैं

किसी को कहाँ कुछ दिखाने की चाह हैं
मुझे तो बस अपना घर बनाने की चाह हैं।

नितेश वर्मा और घर

कु्छेक बातों से पेहरेदारी हट जायें तो अच्छा हैं

कु्छेक बातों से पेहरेदारी हट जायें तो अच्छा हैं
रिश्तेदारों से यहीं बीमारी हट जायें तो अच्छा हैं

कभी अपना भी कुछ अपना सा हो मेरी ज़िंदगी
मेरे सर बोझ किरायेदारी हट जायें तो अच्छा हैं

मुझसे इज़हार का बहाना ढूँढती फिरती रही हैं
कभी उसकी ये होशियारी हट जायें तो अच्छा हैं

कोई और भी तो हैं उसे अपनें करनें की ज़िद में
कही से हो ये दुनियादारी हट जायें तो अच्छा हैं

मेरे यकीन को कभी ये ज़मीं तो नसीब हो वर्मा
इस ज़िंन्दगी से ये बेगारी हट जायें तो अच्छा हैं

नितेश वर्मा

मुझे भी यकीन हैं उसके आने की

मुझे भी यकीन हैं उसके आने की
ये बारिश ठहरी जो नहीं हैं अब तक।

नितेश वर्मा और बारिश

मरेंगे तो जन्नत नसीब होगा

जिन्दगी भर इस तकलीफ में जीये..
मरेंगे तो जन्नत नसीब होगा।

नितेश वर्मा

यूं ही मरता रहा कई बार अजीब अजीब बहाने करकर

वो तो किनारा था उसे पतवार की क्या जरूरत
यूं ही मरता रहा कई बार अजीब अजीब बहाने करकर।

नितेश वर्मा

वर्मा हरेक दहलीज़ इमान बनकर मैं जो जाता हूँ

जब भी तुझे मैं देखता हूँ मैं मिट्टी का हो जाता हूँ
वो तेरा बरसात का होना खुद में मैं खो जाता हूँ

ऐ खुदा अब पत्थर सी होनें की कसक उठती हैं
दीवारों में ही कहीं घर के हिस्सें में तो हो जाता हूँ

चलो ज़िंदगी अब वो तेरा भी कुछ हिसाब कर ले
मौत की घडियां गिनता हूँ तब मैं भी रो जाता हूँ

कुछ ही मग़र ये खामोशियाँ भी दफ्न हैं सीनें में
अब वो शजर नहीं तो इस शहर में ही सो जाता हूँ

बुलाती हैं भेजी उसकी हर चिठ्ठी मुझे मेरे गाँव को
अब तो गुमाने-शोख हैं माँ के पास मैं नो जाता हूँ

लिख कर फिर मिटा दी या रब कैसी किस्मत हैं
वर्मा हरेक दहलीज़ इमान बनकर मैं जो जाता हूँ

नितेश वर्मा और मैं

उसे अपनी तस्वीर बनवानें की ज़िद हैं

मेरे पन्नें तो अब सरीर भी नहीं करतें
उसे अपनी तस्वीर बनवानें की ज़िद हैं

नितेश वर्मा और उसकी ज़िद

[सरीर : लिखतें वक्त पेन और कागज़ के बीच होती हल्की धीमी आवाज]

उसको और कुछ नसीब ना हुआ

उसको और कुछ नसीब ना हुआ
देख ये बहोत तकलीफ हुआ मुझे

नितेश वर्मा और तकलीफ

Sunday, 7 June 2015

शक्लों-आईनें बदलें जिस्म जिनका नहीं

ये सफर तो उन जैसा हैं मग़र उनका नहीं
शक्लों-आईनें बदलें जिस्म जिनका नहीं।

नितेश वर्मा

दिल को अब आराम कहाँ होता हैं

दिल को अब आराम कहाँ होता हैं
ये यूं ही अब बेज़ुबाँ बेजुबाँ होता हैं

नितेश वर्मा और आराम।

ये आवाज कब तक होती रहेगी

ये आवाज कब तक होती रहेगी
तू बर्बाद कब तक होती रहेगी।

नितेश वर्मा

कितना गुनाह वो करेगा

इसका हिसाब वो करेगा
कितना गुनाह वो करेगा

कहीं और छुपा लेना तुम
दिली बात जब वो करेगा

नितेश वर्मा

दरियाँ से जो पानी वो हटातें रहें

कुछ और ही बातें वो बतातें रहें
आ के करीब भी वो सतातें रहें

जुल्फों को सुल्झाकर आएं जब
बेपरवाह ही सब वो ठुकरातें रहें

खुद को समझ लेना चाहते थें
दरियाँ से जो पानी वो हटातें रहें

किसी के ख्याल का जिक्र हैं
सारी रात वो मुझे सुलझातें रहें

मैं अब बस बर्बाद होनें को ही हूँ
फिर भी मुझे क्यूं वो दफनातें रहें

नितेश वर्मा

Tuesday, 2 June 2015

अधूरी बात

रूक जाती हैं अक्सर जुबां पर आकर अधूरी बात
मगर फिरभी हैं चाहतें के कहें जाकर अधूरी बात

ये हाल-ए-दिल शायद उन्हें अब यूं अच्छा ना लगें
वो मुकर के गए हैं मुझसे अभी नाकर अधूरी बात

यूं तो तमाम उम्र जीतें रहें उनमें और कह ना सके
मुहब्बतेंयकींन कैसी न बोले चाहकर अधूरी बात

हर पन्नें पर कहानियाँ ही छपती रही हालतो पर
कोई बयां ना कर सका मुझे देखकर अधूरी बात

मुक्कमल कोई और घर होगा इस जहां में ऐ वर्मा
दीवारें मुतमईन हैं किनसे कहें जाकर अधूरी बात

नितेश वर्मा



अखबारी काम हम थोडी लिखेंगें

किसी रोज़ तुम्हें अपना लिखेंगे
जिस दिन ये दिली दुआ लिखेंगे

लब्ज़, नम आँखें, बिखरी जुल्फें
सारी कायनात हम भी लिखेंगें

किसी से क्या करें यूं मुकाबला
अखबारी काम हम थोडी लिखेंगें

मुनासिफ लगे तो समझ लेना
खामांखाहं क्यूं कुछ हम लिखेंगे

सब समझ के अंज़ान हैं शक्स
ये कानूनी हम भी नहीं लिखेंगे

जो अब सताएं गए कैसे हैं वर्मा
ये कभी और कही हम लिखेंगे

नितेश वर्मा

Monday, 1 June 2015

एक गलत जगह हमनें भी कदम रख दिया हैं

एक गलत जगह हमनें भी कदम रख दिया हैं
जितना भी था हुआ हमनें भी दम रख दिया हैं

कोई तो आकर थोडा ही सही ये जोर लगा दे
महफिल में जो कदम, हमदम ने रख दिया हैं

उसकी नजरों पे हम भी कुछ शे’र करते रहे
तंग आकर नाम उसनें ये बेशर्म रख दिया हैं

नितेश वर्मा