Sunday, 7 June 2015

दरियाँ से जो पानी वो हटातें रहें

कुछ और ही बातें वो बतातें रहें
आ के करीब भी वो सतातें रहें

जुल्फों को सुल्झाकर आएं जब
बेपरवाह ही सब वो ठुकरातें रहें

खुद को समझ लेना चाहते थें
दरियाँ से जो पानी वो हटातें रहें

किसी के ख्याल का जिक्र हैं
सारी रात वो मुझे सुलझातें रहें

मैं अब बस बर्बाद होनें को ही हूँ
फिर भी मुझे क्यूं वो दफनातें रहें

नितेश वर्मा

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