Friday, 19 June 2015

कु्छेक बातों से पेहरेदारी हट जायें तो अच्छा हैं

कु्छेक बातों से पेहरेदारी हट जायें तो अच्छा हैं
रिश्तेदारों से यहीं बीमारी हट जायें तो अच्छा हैं

कभी अपना भी कुछ अपना सा हो मेरी ज़िंदगी
मेरे सर बोझ किरायेदारी हट जायें तो अच्छा हैं

मुझसे इज़हार का बहाना ढूँढती फिरती रही हैं
कभी उसकी ये होशियारी हट जायें तो अच्छा हैं

कोई और भी तो हैं उसे अपनें करनें की ज़िद में
कही से हो ये दुनियादारी हट जायें तो अच्छा हैं

मेरे यकीन को कभी ये ज़मीं तो नसीब हो वर्मा
इस ज़िंन्दगी से ये बेगारी हट जायें तो अच्छा हैं

नितेश वर्मा

No comments:

Post a Comment