कुछ और ही अफसानें वो बताता रहा
क्यूं यूं ही दिल इश्क मेरा दुखाता रहा
मैं तो तन्हाईयों में भी ज़िंदा रह लेता
मग़र वो खुद मुझे अपना बताता रहा
सब सुकून की तालाश में दौड रहे थें
मेरे घर का कमरा मुझे बुलाता रहा
मैं भी तो इसी भ्रम में जी रहा कबसे
मिलाकें नज़रें वो मुझसे झुकाता रहा
दो-दो पल चुराया था ज़िंदगी से मैनें
और ये मौत हक मुझपे जताता रहा
नितेश वर्मा
क्यूं यूं ही दिल इश्क मेरा दुखाता रहा
मैं तो तन्हाईयों में भी ज़िंदा रह लेता
मग़र वो खुद मुझे अपना बताता रहा
सब सुकून की तालाश में दौड रहे थें
मेरे घर का कमरा मुझे बुलाता रहा
मैं भी तो इसी भ्रम में जी रहा कबसे
मिलाकें नज़रें वो मुझसे झुकाता रहा
दो-दो पल चुराया था ज़िंदगी से मैनें
और ये मौत हक मुझपे जताता रहा
नितेश वर्मा
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