माना ये मुमकिन है के वो भूल जाये मुझे
मगर असर रहे होश तो नज़र आये मुझे।
मिल्कियत थी वो मेरी ये मैं भी मानता हूँ
मुझमें जिंदा है अग़र तो नज़र आये मुझे।
ना कोई राबता उससे ना कोई गिला रहा
मैं चाहता हूँ के फिर वो नज़र आये मुझे।
मैं क़िताबों को समेटता हूँ अकसर यूंही
ख़्यालों में उसका चेहरा नज़र आये मुझे।
मैं कबसे ख़ुदमें ही यूं भटक रहा हूँ वर्मा
ठहर जाऊँ जो कहीं वो नज़र आये मुझे।
नितेश वर्मा
मगर असर रहे होश तो नज़र आये मुझे।
मिल्कियत थी वो मेरी ये मैं भी मानता हूँ
मुझमें जिंदा है अग़र तो नज़र आये मुझे।
ना कोई राबता उससे ना कोई गिला रहा
मैं चाहता हूँ के फिर वो नज़र आये मुझे।
मैं क़िताबों को समेटता हूँ अकसर यूंही
ख़्यालों में उसका चेहरा नज़र आये मुझे।
मैं कबसे ख़ुदमें ही यूं भटक रहा हूँ वर्मा
ठहर जाऊँ जो कहीं वो नज़र आये मुझे।
नितेश वर्मा
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