Tuesday, 21 June 2016

पापा! इस बार 100 ₹ एक्सट्रा चाहिए।

बात अकसर किसी बात पर ही उठ जाती है, कोई मौसम आ गया तो कोई बात छिड़ गईं, कोई समां बंधा तो कोई बात-बहस हो गई, और कुछ ना हुआ तो सोशल-मीडिया के चक्कर में थोड़ी देर बैठ गए फ़िर बात ही बात..बहस ही बहस। ठीक उसी तरह किसी ने आज ये याद दिलाया तो पितृत्व-भक्ति भी जग गईं। हालांकि मेरा, मेरे पापा से लगाव बिलकुल ना के बराबर है, आज भी महीनों हो जाते हैं मैं उनको फोन कर ही नहीं पाता। ख़तों का अब कोई सिलसिला हैं नहीं। पहले ये अकसर हुआ करता था, उस ज़माने में जब मैं अपने शह्र से दूर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था तब। आदतन या मजबूरन मैं हर दफ़ा अपने दोस्तों से कुछ उधार कर लेता और ठीक उसी समय पापा के नाम एक ख़त लिखता- पापा! इस बार 100 ₹ एक्सट्रा चाहिए। और अपने शह्र को भेज देता था और पापा हर बार की तरह बिना कुछ बोले या पूछे वो 100 ₹ मेरे महीने के ख़र्च के साथ में भेज दिया करते। मुझे कभी -कभी इस बात की बहुत कसक हुआ करती मग़र फ़िर सोचता ये तो हर पिता का कर्तव्य होता है कि वे अपने बच्चों की जरूरतों को पूरा करे। उस वक़्त ना तो उतना दिमाग ही हुआ करता था और ना ही ये सब सोचने का समय। आज जब भी कभी उन अतीत के पन्नों में खोने को चला जाता हूँ, ख़ुद को एक कर्ज़ में पाता हूँ। मैं हर दफ़ा ये कोशिश करता हूँ कि किसी भी तरह उन कर्ज़ों को कम करू, इसलिए कभी-कभार कोई कहानी लिखकर पेश कर देता हूँ, कोई ग़ज़ल बुन लेता हूँ। मग़र उन्हें ये सब कभी दिखाने का मौका नहीं मिला। अब इतनी हिम्मत भी नहीं रही की जाकर इन सभी को पापा को सुनाऊँ। हालात आज काफ़ी मुख़्तलिफ है, कभी फ़ुरसत नहीं मिलती तो कभी हिम्मत हार जाती है। मग़र आज भी ये दिल कोशिश करता है, कभी एक ज़िद को लेकर बैठ जाता है कि फ़िर कोई एक ख़त लिखूँ पापा के नाम और अपने शह्र को भेज दूं कि - पापा! इस बार 100 ₹ एक्सट्रा चाहिए।

#HappyFathersDay

नितेश वर्मा

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