दुआ देर से आती है बद्दुआ पास मंडराती है
ये जिंदगी आख़िर क्या है ख़्वाब क्या बताती है।
ये जिन्दगी धूप में ही गुजर गईं है मेरी नाजाने
हवाएं अब शामों में क्यूं मुझे इतना रूलाती है।
मैं मुतमईन नहीं हूँ ख़ुदके बिखर जाने पे अब
साँसें बेवजह ये मेरी धड़कने क्यूं धड़काती है।
बस बेफिक्र होना चाहता हूँ इस जद्दोजहद से
जमाने में क्यूं अकसर आवाज़ सहम जाती है।
ये दर्द भी नजाने अब क्या करके मानेगी वर्मा
मरहम हर दफा देखके मुझे क्यूं मुस्कुराती है।
नितेश वर्मा
ये जिंदगी आख़िर क्या है ख़्वाब क्या बताती है।
ये जिन्दगी धूप में ही गुजर गईं है मेरी नाजाने
हवाएं अब शामों में क्यूं मुझे इतना रूलाती है।
मैं मुतमईन नहीं हूँ ख़ुदके बिखर जाने पे अब
साँसें बेवजह ये मेरी धड़कने क्यूं धड़काती है।
बस बेफिक्र होना चाहता हूँ इस जद्दोजहद से
जमाने में क्यूं अकसर आवाज़ सहम जाती है।
ये दर्द भी नजाने अब क्या करके मानेगी वर्मा
मरहम हर दफा देखके मुझे क्यूं मुस्कुराती है।
नितेश वर्मा
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