Saturday, 11 June 2016

दुआ देर से आती है बद्दुआ पास मंडराती है

दुआ देर से आती है बद्दुआ पास मंडराती है
ये जिंदगी आख़िर क्या है ख़्वाब क्या बताती है।

ये जिन्दगी धूप में ही गुजर गईं है मेरी नाजाने
हवाएं अब शामों में क्यूं मुझे इतना रूलाती है।

मैं मुतमईन नहीं हूँ ख़ुदके बिखर जाने पे अब
साँसें बेवजह ये मेरी धड़कने क्यूं धड़काती है।

बस बेफिक्र होना चाहता हूँ इस जद्दोजहद से
जमाने में क्यूं अकसर आवाज़ सहम जाती है।

ये दर्द भी नजाने अब क्या करके मानेगी वर्मा
मरहम हर दफा देखके मुझे क्यूं मुस्कुराती है।

नितेश वर्मा

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