Saturday, 11 June 2016

मेरे मकाँ तक आने वाले जिक्र

मेरे मकाँ तक आने वाले जिक्र
मेरे दिल में तुम उतरे थे कब
मुझे हैराँ नजरों से देखने वाले
मुझसे बातें भी करे थे कब
किसी मशग़ूलियत में नहीं है
इशारे इधर तुमने करे थे कब
वहम पाल कर रखा है तुमने
मेरे लबों से तुम बिछड़े थे कब
इस तरह है याद सबकुछ हमें
इश्क़े-इरादे हमने रखे थे कब
मेरे मकाँ तक आने वाले जिक्र
मेरे दिल में तुम उतरे थे कब।

नितेश वर्मा

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