Sunday, 1 January 2017

यूं ही एक ख़याल सा.. - 31 दिसम्बर 2016

इस साल से उतनी ही मुहब्बत है जितनी इस साल के जल्दी-जल्दी बीत जाने से शिकायत। कुछ ख़याल अभी ज़ेहन से उतरकर लबों पर ठहरें ही थे कि यह सितगमर अलविदा कहकर जाने को उतारूँ हो गया। ख़ैर ख़्याली पुलाव है, पकती रहेगी और पक कर ख़ैराती भी बटेगी। जो अपना हो नहीं पाया, जो ख़ुद में ठहर नहीं पाया, जो हर वक़्त नज़रों में चुभता रहा, जो मुझे समझ नहीं पाया, जो मुझे समझ नहीं आया, सब एक जलती टीस बनकर मुझमें बरकरार रहेगी, जाने कब तलक! पता नहीं। 2016 खुशनुमाँ भी रही तो कहीं बदनुमाँ भी रही। सफ़र बेहतरीन रहा.. कुछ से दुश्मनी हुई तो बहुतों से दोस्ती, किसी की यादों में रात गुजारी तो किसी की आँखों में किताब बनकर ठहर गये, जानलेवा सरप्राईज भी मिलीं, कहीं दौड़ते-भागते साँसें भी ठहर गयी। सब कुछ हुआ फिर भी बाकी बहुत कुछ रह गया इस उम्मीद में 2017 भी जीना है किसी उम्मीद में।
अब जो कसक उठी है तो तुमपर ही आकर ठहरेगी एक बार फिर से कोशिश होगी तुम्हें खुद में चुरा लेने की आखिर ये 31 दिसम्बर की रात कुछ हसीन हो तो यह दिल जाकर 2016 से मुतमईन हो। बस इंतजार है तुम्हारा, और रहेगा जाने कब तलक, पता नहीं। 2016 के बीत जाने से, 2017 के आने से यकीनन बदलेगा ये जिस्म मगर रूह वहीं रहेगी तुमसे एक हो जाने की जिद में।
मिलन की आस में.. हाय! ये दिसम्बर भी गुजर गयी प्यास में।
ये 31 दिसम्बर की रात आज फिर गुजर जायेगी
कहते है कि 2017 आके खुशियों से भर जायेगी।

नितेश वर्मा और 2017

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