Sunday, 1 January 2017

दिल जो है खुली भरी बाज़ार में

दिल जो है खुली भरी बाज़ार में
आँखें हैं हैरान इस प्यार में
है कुसूर क्या, इनका कुसूर क्या
दिल ही है जो लगी है इंकार में
दिल जो है खुली भरी बाज़ार में..
तय ना हुआ नाम जिनका कभी
इश्क़-ए-बेनाम में है क़ैद वही
जो तीर इस पार हुआ था उनका
मुहब्बत जी उठीं थी वही कहीं
दिल भी अज़ीब है ये सुनने लगा
है कुछ भी नहीं अब इख़्तियार में
दिल जो है खुली भरी बाज़ार में..
दाम लगने लगे बज़्म जमने लगी
गिला करे कोई शख़्स कभी
कहीं अश्क बेक़दर सी बहने लगी
घायल हुए कहीं अफ़साने कई
कहीं मरहम घावों पर लगने लगी
रात सूरत में उनकी पिघलने लगी
दिल जो दीदार को मचलने लगी
बात क्या करें कल की अख़बार में
दिल जो है खुली भरी बाज़ार में..
नितेश वर्मा

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