Sunday, 1 January 2017

तमाम बोझ सीने पर रखते हुए सोचा ना था

तमाम बोझ सीने पर रखते हुए सोचा ना था
मर जायेंगे जहां में भटकते हुए सोचा ना था।
फूल बाग़ के मुरझाने लगेंगे इस धूप में ऐसे
घटाओ ने हमपे ये बरसते हुए सोचा ना था।
जो कुछ भी था हमारे मौजूद होने से ही था
कि हम मरे आख़िर मरते हुए सोचा ना था।
वो ख़त किताब में तब्दील होने लगी तमाम
बदलेंगे इतना कब, पढ़ते हुए सोचा ना था।
ये गुजरते साल भी ख़्वाहिशें लेके गई वर्मा
बदलते साल में, चमकते हुए सोचा ना था।
नितेश वर्मा

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