Sunday, 1 January 2017

मेरे लिखे हुए हर ख़त का जवाब देना है तुझे

मेरे लिखे हुए हर ख़त का जवाब देना है तुझे
इनके हर इक क़तरों का हिसाब देना है तुझे
मैं तेरे इश्क़ में क्या से क्या हो गया, ख़बर है?
मेरे बिखरें हर हसीं रात का ख़ाब देना है तुझे
मेरे हिस्से की धूप जब तुझपे बन जाती थी
जब ख़्वाहिश भरी रात तुझमें रह जाती थी
कोई सर्दी जब बे-मुलाक़ात गुजर जाती थी
जब एहसास इंतज़ामों में सिमट जाती थी
दरम्यान जब दिल बे-ज़ुबान रह जाती थी
वो नमाज़ों में जब दुआएँ सहम जाती थी
मेरी हर उदासियों का किताब देना है तुझे
मेरे लिखे हुए हर ख़त का जवाब देना है तुझे
मुमकिन नहीं था जब हमारा मिलना कभी
बारिशों में बारहां जिस्मों का पिघलना कभी
ज़ुल्म जब बढ़ती जाती थी किसी गर्मियों में
हुस्न का राख़ होके पत्थरों में ढ़लना कभी
जब याद बे-सबब सताती थी स्याह रातों में
किसी सुब्ह सा ढ़लकर तेरा निकलना कभी
मेरी घुटन आवाज़ को इंक़लाब देना है तुझे
मेरे लिखे हुए हर ख़त का जवाब देना है तुझे।
नितेश वर्मा

No comments:

Post a Comment