छोड़ मुझे!
-तेरे में ऐसा क्या है जो मुझे तेरे अलावा कुछ और दिखता ही नहीं।
हाथ छोड़ दे मेरा.. बहुत दर्द हो रहा है!
-मैंने इन्हें ना छोड़ने के लिए थामा हैं.. मैं तुम्हें कभी छोड़ नहीं सकता।
चुपचाप से छोड़ दे मेरा हाथ.. वर्ना मैं शोर मचा दूंगी।
-क्या कहेगी.. शोर मचाकर? ज़रा मैं भी सुनूँ!
मर जा तू कहीं जाकर। मुझे तो छोड़ दे!
-नहीं.. नहीं छोड़ूँगा! और मरकर भी कहाँ जाऊँगा.. वापस आकर तुझमें ही लिपट जाऊँगा।
हें! अज़ीब लड़का है ये।
-अज़ीब तो हूँ थोड़ा.. मग़र तुझसे बेपनाह मुहब्बत करता हूँ.. कभी आजमाइश में डालकर देख लेना।
इसकी कोई जरूरत नहीं! मुझसे दूर ही रहा कर तू।
-कितनी दूर?
कुछ ऐसा कि मैं ज़मीं बन जाऊँ और तू आसमां।
-काफ़ी बेहूदगी भरा ख़याल है.. पता नहीं तेरे हलक से ये कैसे उतर गया?
अब जो मेरे दिल में है वहीं ज़ुबाँ से उतरेगी ना!
अब छोड़ दे मेरा हाथ।
-छोड़ दूँ?
हाँ! छोड़..
-तुझे पता है मेरी माँ क्यूं कहती है?
नहीं! और मुझे कैसे पता होगा ये की तुम्हारी माँ क्या कहती है?
-सुन! मेरी माँ कहती है - अग़र लड़की जब मर्द से हाथ छुड़ाने लगे ना तो ये मत समझो की वो तुम्हें छोड़ के जा रही है बल्कि ये समझ लो कि वो तुम्हें छोड़ के जा चुकी है।
बकवास मत करो!
-तुझे इसका इल्म नहीं है इसलिए तुझे ये बकवास ही लगेगा। ख़ैर तू जा.. मैंने हाथ छोड़ दिया है तेरा।
थाम के रख.. और जरूरत पड़े तो हक़ जता लिया कर। तू मर्द का बच्चा है.. शेर का नहीं जो डर जायेगा।
-तू अज़ीब है!
तुझसे तो कम। ले पकड़ के दिखा फ़िर से!
-अरे! जा.. तुझे पकड़ के रखूँगा मैं। किसी और को पकड़.. आईने में ख़ुदको इक दफ़ा निहार फ़िर कोई बात किया कर!
मर जा कहीं जाकर कुत्ते!
-मैं नहीं मरता वो भी इतनी सी छोटी बेइज्जती के बाद.. कभी नहीं। और तबतक नहीं मरूँगा जबतक तू ख़ुद मुझसे आकर नहीं कहेगी की ले थाम ले.. इन हाथी जैसे हाथों को.. और मैं थामूँगा और उस बोझ से फ़िर मर जाऊँगा। वज़्न कम कर अपना भगवान के वास्ते!
चल अब कट ले जल्दी।
-हाँ.. हाँ! जा रहा हूँ रे हाथी.. ज्यादा चिंघाड़ मत!
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa
-तेरे में ऐसा क्या है जो मुझे तेरे अलावा कुछ और दिखता ही नहीं।
हाथ छोड़ दे मेरा.. बहुत दर्द हो रहा है!
-मैंने इन्हें ना छोड़ने के लिए थामा हैं.. मैं तुम्हें कभी छोड़ नहीं सकता।
चुपचाप से छोड़ दे मेरा हाथ.. वर्ना मैं शोर मचा दूंगी।
-क्या कहेगी.. शोर मचाकर? ज़रा मैं भी सुनूँ!
मर जा तू कहीं जाकर। मुझे तो छोड़ दे!
-नहीं.. नहीं छोड़ूँगा! और मरकर भी कहाँ जाऊँगा.. वापस आकर तुझमें ही लिपट जाऊँगा।
हें! अज़ीब लड़का है ये।
-अज़ीब तो हूँ थोड़ा.. मग़र तुझसे बेपनाह मुहब्बत करता हूँ.. कभी आजमाइश में डालकर देख लेना।
इसकी कोई जरूरत नहीं! मुझसे दूर ही रहा कर तू।
-कितनी दूर?
कुछ ऐसा कि मैं ज़मीं बन जाऊँ और तू आसमां।
-काफ़ी बेहूदगी भरा ख़याल है.. पता नहीं तेरे हलक से ये कैसे उतर गया?
अब जो मेरे दिल में है वहीं ज़ुबाँ से उतरेगी ना!
अब छोड़ दे मेरा हाथ।
-छोड़ दूँ?
हाँ! छोड़..
-तुझे पता है मेरी माँ क्यूं कहती है?
नहीं! और मुझे कैसे पता होगा ये की तुम्हारी माँ क्या कहती है?
-सुन! मेरी माँ कहती है - अग़र लड़की जब मर्द से हाथ छुड़ाने लगे ना तो ये मत समझो की वो तुम्हें छोड़ के जा रही है बल्कि ये समझ लो कि वो तुम्हें छोड़ के जा चुकी है।
बकवास मत करो!
-तुझे इसका इल्म नहीं है इसलिए तुझे ये बकवास ही लगेगा। ख़ैर तू जा.. मैंने हाथ छोड़ दिया है तेरा।
थाम के रख.. और जरूरत पड़े तो हक़ जता लिया कर। तू मर्द का बच्चा है.. शेर का नहीं जो डर जायेगा।
-तू अज़ीब है!
तुझसे तो कम। ले पकड़ के दिखा फ़िर से!
-अरे! जा.. तुझे पकड़ के रखूँगा मैं। किसी और को पकड़.. आईने में ख़ुदको इक दफ़ा निहार फ़िर कोई बात किया कर!
मर जा कहीं जाकर कुत्ते!
-मैं नहीं मरता वो भी इतनी सी छोटी बेइज्जती के बाद.. कभी नहीं। और तबतक नहीं मरूँगा जबतक तू ख़ुद मुझसे आकर नहीं कहेगी की ले थाम ले.. इन हाथी जैसे हाथों को.. और मैं थामूँगा और उस बोझ से फ़िर मर जाऊँगा। वज़्न कम कर अपना भगवान के वास्ते!
चल अब कट ले जल्दी।
-हाँ.. हाँ! जा रहा हूँ रे हाथी.. ज्यादा चिंघाड़ मत!
नितेश वर्मा
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