अब मुझसे एक भी काम नहीं हो सकता सुबह से दौड़ता फिर रहा हूँ अग़र ओलंपिक में इतना दौड़ता तो कमसेकम इस मुहल्ले में सबके घर एक-एक मैडल रखा होता।- पप्पू ने परेशानी में अपना फ़रमान सुनाया और अपने कमरे में चला गया।
लेकिन तू मैडल ले आता तो मुहल्ले में सबके घर क्यूं रखता अपना घर तो है ही।- मम्मी ने किचन से एक मंतर फूँक फ़ेंका।
वो इसलिए क्योंकि, मुझे पता है कि वो एक-एक करके आप ख़ुद उन्हें बाँट देती।- पप्पू ने भी ईट का जवाब ईट से दिया। वो क्या था ना.. माँ थी सामने वर्ना पप्पू से अच्छा पत्थर कोई नहीं फ़ेंकता।
मैं..मैं भला क्यूं किसी को कोई चीज़ देने लगी। पहले एक काम कर देख कोई आया है बाहर, शायद दूधवाला है, जाकर दूध ले ले बेटा। - मम्मी ने किचन से फिर पप्पू को काम सौंप दिया।
मम्मी मैंने एक बार बोल दिया ना, मैं नहीं जा रहा तो बस नहीं जा रहा।- पप्पू ने भी ढिठाई से जवाब दे सुनाया।
अच्छा याद आया वो मिश्राजी की बेटी होगी।
कौन मिश्राजी की बेटी?
अरे वो सुहानी, उसी को कुछ काम था। मैंने मना भी किया था लेकिन वो बोलने लगी की उससे तुम्हारी बात हो गई है, इसलिये वो आ रही है। शायद वही होगी।
पप्पू का इतना सुनना था कि वो दौड़ के भागता हुआ दरवाज़े पर गया, सामने सुहानी खड़ी थी। वो उसे देखता रह गया।
सुहानी ने अग़र उसे ना टोका होता तो वो सुहानी को अपने सपने में लेकर कहीं और चला गया होता और वो बारिश में बाहर भीगती रहती।
पप्पू को फिर तुरंत सुहानी का ख़याल आया और उसने दरवाज़ा खोल दिया।
अरे! तुम तो पूरी भीग गयी हो? -पप्पू ने ख़याल जताते हुए कहा।
नहीं भीगती अग़र तुम बुत बनकर नहीं खड़े हुए होते तो.. - सुहानी ने बड़े नाराज़ी से कहा।
अरे मुझे लगा दूधवाला होगा.. इसलिए.. पप्पू ये कहते-कहते चुप हो गया।
बड़े आएँ! दूधवाला होता तो इतनी देर तक दरवाज़ा ना खटखटाता.. एक बार नहीं खोलते तो वो कहीं और निकल गया होता।
टाँगे नहीं तोड़ देता मैं.. कैसे निकल जाता कहीं और..?
बस इसीलिए मैं तुम्हारे पास कभी नहीं आती.. जब देखो मार-काट।
अच्छा छोड़ भी दो ना.. गुस्सा थूक दो!
कहाँ थूँकू?
उसके मुँह पर ही थूक दो बेटा! तीन दिन से उसने नहाया भी नहीं इसी बहाने नहा तो लेगा कमसेकम।- मम्मी ने किचन से ही बकवास लगा दी।
मम्मी.. - पप्पू ने माँ को समझाते हुए आवाज़ लगाया.. माँ चुप हो गई।
अच्छा ये बताओ तुम चलोगे साथ मेरे?
हाँ, बिलकुल।
नहीं बेटा वो नहीं जा पायेगा वो बहुत थका हुआ है मैंने तुम्हें बताया भी तो था।
मम्मी..- अरे छोड़ो.. इनकी तो बस यही आदत है। तुम बताओ कहाँ चलना है?
हुम्म्म्म!
अरे! बारिश में तुम धनिया लाने जाते नहीं हो और पतंगे उड़ाने का बहुत शौक है? क्या बात है?
पतंगे?- सुहानी ने पप्पू की आँखों में देखते हुए पूछा।
पतंगे? अरे! माँ क्या हो गया है आपके जोक्स को आजकल?
अरे! छोड़ो इन्हें तुम.. आजकल कोई सस्ती सी रोमांटिक नॅाबेल पढ़ रही है.. दिमाग़ सठियाया हुआ है इनका। तुम बात करो..
तो तुम चल रहे हो मेरे साथ..
कहाँ? बताओ तो सही?
मेरे साथ.. कहीं दूर इस बारिश में भीगने.. मैं अकेले नहीं जा सकती.. तुम चलोगे साथ मेरे?
हाँ! चल लूंगा.. लेकिन मुझे बारिश में भीगना कुछ ठीक नहीं लगता।
तुम भी ना कैसी बातें करते हो? तुमने समुंदर देखा है?
हाँ! क्यूं?
मैंने कभी नहीं देखा।
मैं नहीं जा रहा.. समुंदर दिखाने वो भी इस बारिश में।
तुम बड़े नवाब हो? कैसे नहीं चलोगे मैं देखती हूँ।
मैं नहीं जा रहा.. हाँ! मुझे याद आया मेरे सर में बहुत दर्द है मैं कहीं नहीं जा सकता। आह!
बहाने मत बनाओ।
कसम से.. अचानक बहुत तेज़ दर्द होने लगा है।
मैं दबा दू.. थोड़ी देर।
हाँ! दबा दो।
फ़िर चलोगे?
हाँ! नहीं चलूँगा तो तुम मेरी जान नहीं ले लोगी?
बेटा! धनिया भी लेते आना!
मम्मी..? क्या है ये..? हद है! 😆
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa
लेकिन तू मैडल ले आता तो मुहल्ले में सबके घर क्यूं रखता अपना घर तो है ही।- मम्मी ने किचन से एक मंतर फूँक फ़ेंका।
वो इसलिए क्योंकि, मुझे पता है कि वो एक-एक करके आप ख़ुद उन्हें बाँट देती।- पप्पू ने भी ईट का जवाब ईट से दिया। वो क्या था ना.. माँ थी सामने वर्ना पप्पू से अच्छा पत्थर कोई नहीं फ़ेंकता।
मैं..मैं भला क्यूं किसी को कोई चीज़ देने लगी। पहले एक काम कर देख कोई आया है बाहर, शायद दूधवाला है, जाकर दूध ले ले बेटा। - मम्मी ने किचन से फिर पप्पू को काम सौंप दिया।
मम्मी मैंने एक बार बोल दिया ना, मैं नहीं जा रहा तो बस नहीं जा रहा।- पप्पू ने भी ढिठाई से जवाब दे सुनाया।
अच्छा याद आया वो मिश्राजी की बेटी होगी।
कौन मिश्राजी की बेटी?
अरे वो सुहानी, उसी को कुछ काम था। मैंने मना भी किया था लेकिन वो बोलने लगी की उससे तुम्हारी बात हो गई है, इसलिये वो आ रही है। शायद वही होगी।
पप्पू का इतना सुनना था कि वो दौड़ के भागता हुआ दरवाज़े पर गया, सामने सुहानी खड़ी थी। वो उसे देखता रह गया।
सुहानी ने अग़र उसे ना टोका होता तो वो सुहानी को अपने सपने में लेकर कहीं और चला गया होता और वो बारिश में बाहर भीगती रहती।
पप्पू को फिर तुरंत सुहानी का ख़याल आया और उसने दरवाज़ा खोल दिया।
अरे! तुम तो पूरी भीग गयी हो? -पप्पू ने ख़याल जताते हुए कहा।
नहीं भीगती अग़र तुम बुत बनकर नहीं खड़े हुए होते तो.. - सुहानी ने बड़े नाराज़ी से कहा।
अरे मुझे लगा दूधवाला होगा.. इसलिए.. पप्पू ये कहते-कहते चुप हो गया।
बड़े आएँ! दूधवाला होता तो इतनी देर तक दरवाज़ा ना खटखटाता.. एक बार नहीं खोलते तो वो कहीं और निकल गया होता।
टाँगे नहीं तोड़ देता मैं.. कैसे निकल जाता कहीं और..?
बस इसीलिए मैं तुम्हारे पास कभी नहीं आती.. जब देखो मार-काट।
अच्छा छोड़ भी दो ना.. गुस्सा थूक दो!
कहाँ थूँकू?
उसके मुँह पर ही थूक दो बेटा! तीन दिन से उसने नहाया भी नहीं इसी बहाने नहा तो लेगा कमसेकम।- मम्मी ने किचन से ही बकवास लगा दी।
मम्मी.. - पप्पू ने माँ को समझाते हुए आवाज़ लगाया.. माँ चुप हो गई।
अच्छा ये बताओ तुम चलोगे साथ मेरे?
हाँ, बिलकुल।
नहीं बेटा वो नहीं जा पायेगा वो बहुत थका हुआ है मैंने तुम्हें बताया भी तो था।
मम्मी..- अरे छोड़ो.. इनकी तो बस यही आदत है। तुम बताओ कहाँ चलना है?
हुम्म्म्म!
अरे! बारिश में तुम धनिया लाने जाते नहीं हो और पतंगे उड़ाने का बहुत शौक है? क्या बात है?
पतंगे?- सुहानी ने पप्पू की आँखों में देखते हुए पूछा।
पतंगे? अरे! माँ क्या हो गया है आपके जोक्स को आजकल?
अरे! छोड़ो इन्हें तुम.. आजकल कोई सस्ती सी रोमांटिक नॅाबेल पढ़ रही है.. दिमाग़ सठियाया हुआ है इनका। तुम बात करो..
तो तुम चल रहे हो मेरे साथ..
कहाँ? बताओ तो सही?
मेरे साथ.. कहीं दूर इस बारिश में भीगने.. मैं अकेले नहीं जा सकती.. तुम चलोगे साथ मेरे?
हाँ! चल लूंगा.. लेकिन मुझे बारिश में भीगना कुछ ठीक नहीं लगता।
तुम भी ना कैसी बातें करते हो? तुमने समुंदर देखा है?
हाँ! क्यूं?
मैंने कभी नहीं देखा।
मैं नहीं जा रहा.. समुंदर दिखाने वो भी इस बारिश में।
तुम बड़े नवाब हो? कैसे नहीं चलोगे मैं देखती हूँ।
मैं नहीं जा रहा.. हाँ! मुझे याद आया मेरे सर में बहुत दर्द है मैं कहीं नहीं जा सकता। आह!
बहाने मत बनाओ।
कसम से.. अचानक बहुत तेज़ दर्द होने लगा है।
मैं दबा दू.. थोड़ी देर।
हाँ! दबा दो।
फ़िर चलोगे?
हाँ! नहीं चलूँगा तो तुम मेरी जान नहीं ले लोगी?
बेटा! धनिया भी लेते आना!
मम्मी..? क्या है ये..? हद है! 😆
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa
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