अज़ीब इत्तेफ़ाक हुआ है यार क्या कहिये
हो गया है उनसे फ़िरसे प्यार क्या कहिये।
वो आयेंगी सपनों में आज की रात भी तो
रंग देंगी बदस्तूर दिले-दीवार क्या कहिये।
नहीं होना होता है जब कुछ भी भला मेरा
क्यूं मिलते हैं फ़रिश्ते-बाज़ार क्या कहिये।
हम कोई ग़ालिब नहीं जो दर्द अपना लेंगे
और ख़ुदा भी नहीं, ये मयार क्या कहिये।
दम घुटता रहा था अपनों के बीच में वर्मा
रिहा भी हुआ तो, अत्याचार क्या कहिये।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
हो गया है उनसे फ़िरसे प्यार क्या कहिये।
वो आयेंगी सपनों में आज की रात भी तो
रंग देंगी बदस्तूर दिले-दीवार क्या कहिये।
नहीं होना होता है जब कुछ भी भला मेरा
क्यूं मिलते हैं फ़रिश्ते-बाज़ार क्या कहिये।
हम कोई ग़ालिब नहीं जो दर्द अपना लेंगे
और ख़ुदा भी नहीं, ये मयार क्या कहिये।
दम घुटता रहा था अपनों के बीच में वर्मा
रिहा भी हुआ तो, अत्याचार क्या कहिये।
नितेश वर्मा
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