मैं बेकरार हूँ के मुझको करार आ जाये
भले इस जिस्म में, कहीं दरार आ जाये।
क्या खोया है मैंने इस ज़िंदगी में साहब
काश कमाई वो पुरानी हज़ार आ जाये।
दर्द भी बहुत होती हैं, पामाल रस्तों पर
चलो फ़िर.. के ATM या बार आ जाये।
जो ज़ेब खाली हो तो तकलीफ़ होती है
ये जीत भी क्या जो फ़िर हार आ जाये।
हम ख़ामोश रहे मुनासिब मानके वर्मा
हम बोलने लगे के तरफ़दार आ जाये।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
भले इस जिस्म में, कहीं दरार आ जाये।
क्या खोया है मैंने इस ज़िंदगी में साहब
काश कमाई वो पुरानी हज़ार आ जाये।
दर्द भी बहुत होती हैं, पामाल रस्तों पर
चलो फ़िर.. के ATM या बार आ जाये।
जो ज़ेब खाली हो तो तकलीफ़ होती है
ये जीत भी क्या जो फ़िर हार आ जाये।
हम ख़ामोश रहे मुनासिब मानके वर्मा
हम बोलने लगे के तरफ़दार आ जाये।
नितेश वर्मा
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