Monday, 19 December 2016

यूं ही एक ख़याल सा..

तुमने फ़िर उसे बुला लिया?
-हाँ! तो इसमें हर्ज़ ही क्या है?
पापा उसकी टाँगे तुड़वा देंगे.. फ़िर फ़रमाते रहना इश्क़ उस लंगड़े से.. बड़ी आयी कमीनी!
-वो टाँगे तुड़वा के चुप नहीं बैठने वाला.. करारा जवाब दिया था उसने पापा को.. याद नहीं है क्या तुम्हें?
सुना था मैंने.. भाई तो उसकी जान ले लेंगे अग़र वो तुम्हारी तरफ़ फटका भी तो। भाई के गुस्से को तुमने अभी देखा नहीं है। मेरी मानो तो ज्यादा पंगे मत लो और उसे जाने को कहो।
-अरे जाओ! मर्द का बच्चा है वो.. अपनी टाँगे तुड़वा लेगा मगर बिना मिले मुझसे तो वो हिलेगा भी नहीं.. वहाँ से।
खूब समझती हो तुम उसे.. फट्टू है वो एक नम्बर का। पापा के सामने तो एक आवाज़ नहीं निकलती उससे.. बड़ा आया मर्द का बच्चा।
- इज्जत कर जाता है वो उनकी। हालांकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि वो उनसे डर जाता हो।
अरे! नासमझ.. तू तो ख़ुद मरेगी ही.. साथ-साथ उसे भी ले डूबेगी। वो तो नासमझ है तू क्यूं बेवकूफ बन रही है?
-उसे सब समझ में हैं.. मैंने सारी बातें उसे खुलकर समझा रखी हैं। अब इतना भी बच्चा नहीं है वो.. बस 4 साल ही छोटा है वो मुझसे। अब उसे कोई शहजादी चाहिये तो इतना जोख़िम तो उठाना ही पड़ेगा.. वर्ना मरे कहीं और मेरी बला से।
अच्छा! बहुत खूब बोल लेती हो तुम.. इतराना छोड़ो और उसे फ़ोन लगाओ।
-मुझे पता है वो बिना मुझे देखे नहीं जायेगा और मैं कोई फोन नहीं मिला रही..
किस बात की बेचैनी है तुम्हें? कहाँ जायेगी उससे मिलकर.. वो एकदम कंगाल इंसान है.. सर्दियों की एक रात जब फुटपाथ पर बितायेगी ना तो सब होश ठिकाने आ जायेंगे।
-अरे इतना भी गिरा हुआ नहीं है वो.. कहीं फ़्लैट ले रक्खा है उसने।
हुम्म्म्म! तो बात यहाँ तक बढ़ गई है?
-ये तो कुछ भी नहीं.. बात बहुत आगे तक निकल गई है।
हाय.. दइया! कहीं तुम्हारे बीच कुछ ऐसा-वैसा ते नहीं..
-Exactly! अब आयी ना पते वाली बात पर तुम।
तुम्हारी तो ख़ैर नहीं। आज तो बेटा तुम्हारी चमड़ी तुम्हारे जिस्म से अलग हो ही जायेगी.. पापा को बस आने दो।
-अच्छा सुनो तो! ये बताओ कैसी लग रही हूँ मैं?
ख़ुद उसी से पूछ लेना.. सारी हदे तोड़कर जाओगी तो..
-सुनो तुम भी.. Lecture मारने लगी हो बहुत। अब ये आईना हटवा देना यहाँ से उसकी आँखों में ही देखकर पूछ लूंगी.. कैसी लग रही हूँ मैं?
और अग़र उसमें पहले से ही कोई और छिपा हुआ होगा तो..?
-कैसी मरी हुई बात कर रही हो?
जब यकीन होगा ना तो तुम ख़ुद आकर कहोगी आईना मत हटाओ.. उसे तोड़ दो और बाहर फ़ेंक आओ।
-इतनी ज़ालिम मत बनो!
तो तुम पहले उसे जाने को कहो.. मैं नहीं चाहती की आज कोई Dramatic Scene बने।
-मैं पीछे के रास्ते से मिल लू उसे.. Please! ना मत कहना अब।
चल मिल ले.. लेकिन जल्दी वापस आना आधे घंटे में मेरी मँगनी है.. समझी कुछ?
-हाँ-हाँ! सब समझ गई। ये बताओ कैसी लग रही हूँ।
बहुत प्यारी।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

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