Monday, 19 December 2016

यूं ही एक ख़याल सा..

फोन करूँ?
करो.. तुम्हें कबसे इज़ाजत लेनी पड़ गई?
नहीं.. वो मुझे लगा तुम मुझसे नाराज़ होगे।
मैं..? नहीं तो! ऐसा क्यूं लगा तुम्हें?
कल तुम्हें थप्पड़ जो मार दिया था.. इसलिए।
उसे याद मत दिलाओ..
जोर की लगी थी क्या?
हाँ! बहुत जोर की। ऐसा करारा थप्पड़ तो मैंने आज तक नहीं खाया था। तुम बहुत ज़ालिम हो यार.. बिलकुल मेरे बाप की तरह।
हैं.. सच में? ऐसा क्या?
और नहीं तो क्या?
तुम बदल तो नहीं जाओगे ना?
पता नहीं! इसका कोई जवाब नहीं है मेरे पास।
अग़र हालात बदलती हैं तो?
शायद! यकीन से नहीं कह सकता कुछ।
कुछ तो कहो..
ज़िद मत करो।
करूँगी.. कहो.. कुछ।
तुम बहुत बुरी हो.. मुझे तुमसे चिढ़न है.. वो बात अलग है तुम खूबसूरत भी हो।
किस बात से चिढ़न है तुम्हें..? मैं बहुत खूबसूरत हूँ इससे..?
नहीं! इससे की तुम्हारा कोई यकीन नहीं.. हर रोज़ तुम बदलती जाती हो और सारी बकवास मेरे सर पर उड़ेल देती हो। प्यार नहीं कर सकती ये अलग बात है लेकिन प्यार से रह तो सकती हो ना? इसमें क्या हर्ज़ है?
तुम बोल रहे हो ये..?
हाँ! अब फोन ही कर लो।
तुम करो.. ना!
चलो रहने दो.. बाद में करूँगा।
अभी करो..!
तुम मरो.. अभी.. Bye!
यार! तुम्हारा मसला क्या है?
अपना इलाज़ कराओ, बेवकूफ.. मुझसे बहस मत करो।
सुनो..?
मरो तुम.. Bye!

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

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