इक शिकायत की हाय जाँ निकल जाएं
वो पूछ ले कुछ के ये ज़बाँ निकल जाएं।
दूर मुहल्ले में चराग़ मौजूद नहीं हैं अब
काश! के यहाँ से ये मकाँ निकल जाएं।
कोई आयेगा इस तरह ये मुमकिन नहीं
कोई छूटे अब के ये गुमाँ निकल जाएं।
सहर कुहासे से लिपटी रही थी तमाम
जो आग लगाओ ये धुआँ निकल जाएं।
है नहीं के यकीन अब ख़ुदपे मेरा वर्मा
दिल है टूटा, कब मेहमाँ निकल जाएं।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
वो पूछ ले कुछ के ये ज़बाँ निकल जाएं।
दूर मुहल्ले में चराग़ मौजूद नहीं हैं अब
काश! के यहाँ से ये मकाँ निकल जाएं।
कोई आयेगा इस तरह ये मुमकिन नहीं
कोई छूटे अब के ये गुमाँ निकल जाएं।
सहर कुहासे से लिपटी रही थी तमाम
जो आग लगाओ ये धुआँ निकल जाएं।
है नहीं के यकीन अब ख़ुदपे मेरा वर्मा
दिल है टूटा, कब मेहमाँ निकल जाएं।
नितेश वर्मा
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