अभी मरा नहीं हूँ मैं, बंद करो दफ़नाने मुझे
इक आवाज़ क्या उठाईं लगे हो मिटाने मुझे।
शख़्स वे पागल नहीं थे जो खड़े थे रस्तों पर
मुनासिब तुम ही नहीं जो लगे समझाने मुझे।
क्या हुआ है तुमको इस मुकाम पर आकर
लगे हो क्यूं अब आँखें तरेर के दिखाने मुझे।
ग़रीबियत लोगों के ज़ुबाँ पे भूख लिखती है
तन की अकड़ कहती है पैसे हैं खाने मुझे।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
इक आवाज़ क्या उठाईं लगे हो मिटाने मुझे।
शख़्स वे पागल नहीं थे जो खड़े थे रस्तों पर
मुनासिब तुम ही नहीं जो लगे समझाने मुझे।
क्या हुआ है तुमको इस मुकाम पर आकर
लगे हो क्यूं अब आँखें तरेर के दिखाने मुझे।
ग़रीबियत लोगों के ज़ुबाँ पे भूख लिखती है
तन की अकड़ कहती है पैसे हैं खाने मुझे।
नितेश वर्मा
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