हर ज़ुर्म को वो ज़ालिम यूं तहेगा हमेशा
घर ही बनेगा ऐसा के वो ढहेगा हमेशा।
ये मुमकिन ही नहीं है कि आप चुप रहे
तो छोड़िये वो भी चीख़ता रहेगा हमेशा।
ख़ंदा-पेशानी ज़हन में लेकर बैठे रहना
वर्ना हर नज़्र को वो बुरा कहेगा हमेशा।
यही मान लीजिए के दिल कमबख़्त है
एक सूनापन है जो यूं ही बहेगा हमेशा।
इक दर्द भी मूसल्लत है सीने पर वर्मा
क्या कहूँ क्या-क्या रोग़ सहेगा हमेशा।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
घर ही बनेगा ऐसा के वो ढहेगा हमेशा।
ये मुमकिन ही नहीं है कि आप चुप रहे
तो छोड़िये वो भी चीख़ता रहेगा हमेशा।
ख़ंदा-पेशानी ज़हन में लेकर बैठे रहना
वर्ना हर नज़्र को वो बुरा कहेगा हमेशा।
यही मान लीजिए के दिल कमबख़्त है
एक सूनापन है जो यूं ही बहेगा हमेशा।
इक दर्द भी मूसल्लत है सीने पर वर्मा
क्या कहूँ क्या-क्या रोग़ सहेगा हमेशा।
नितेश वर्मा
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