अरे.. क्या ख़ाक मुहब्बत! ख़ामाख़ाँ की बातें हैं ये सब.. क्या-क्या बताऊँ मैं.. अलमिया ये है कि..
तमाम रात कुफ़्रे-हिज़्र में गुजारी
और सुबह मुँह धोने को बैठ गए।
-बड़े चिड़चिड़े से लग रहे हो.. क्यूं क्या हुआ?
मत पूछो यार!
-ठीक है.. मत बताओ।
मतलब पूछो.. वो तो ऐसे ही कहने वाली बात है ना..
कि हमपे जानेमन कितने ग़म मुस्तैद रहते हैं
हलक में जान रहती है लब ख़ामोश रहते हैं।
-हुम्म्म्म! कबसे हुआ है ऐसा हाल?
पता नहीं! बस बेचैन रहता हूँ हर वक़्त.. उसकी याद आती है तो सौ परेशानी भी साथ आती हैं। अरे यार! मुझे तो चैन कभी मयस्सर ही नहीं।
-लेकिन याद तो कभी-कभी आती होगी?
तुम साँस लेती हो?
-ये कैसा सवाल है?
सवाल नहीं है ख़ातून ज़वाब है.. मुहब्बत की बातें किताब पढ़कर करने वाले अग़र चुप ही रहे तो ज्यादा अच्छा है।
-Shut up!
How dare you?
-मुहब्बत की है मैंने.. वो अलग बात है मैंने तुम्हारी तरह कोई तमाशा नहीं बनाया उसका।
मैं तमाशा बना रहा हूँ? अज़ीब बात मत करो।
-कुछ अज़ीब नहीं कहा है मैंने! दिमाग़ से सोचो और वाहियात ख़याल से बाहर निकल आओ जनाब।
तुम्हारे मुँह लगना ही नहीं है मुझे.. हर वक़्त ज्ञान बघारती रहती हो।
-मैं तुम्हें मुँह से लगाऊँगी कभी? जाओ यार मुँह धोकर शक्ल देखो अपनी.. और मैं क्या कोई भी तुम्हें मुँह लगाने से पहले सौ बार सोचेगा।
यार! तुम ताने मारना छोड़ो भी.. हद होती है किसी भी चीज़ की।
-कमाल करते हैं जनाब.. मुँह भी लगते हैं और इज्जत की फ़िक्र भी करते हैं.. हँसीं आती है.. ख़ैर..
ख़ैर क्या? बात पूरी करो।
-मुझसे नहीं होगी कोई भी बात पूरी.. मैं जा रही हूँ।
रूको!
-कोई मतलब नहीं अब रूकने का जानेमन।
जाओ फ़िर!
-तुम भी चलो।
नहीं.. मैं नहीं जाऊँगा। तुम जाओ।
-अकेला छोड़ रहे हो मुझे?
तुम्हें जाने की जल्दी है बस.. और कोई बात नहीं है।
-मैं रूक भी सकती हूँ.. रोक के तो देखो!
नहीं तुम जाओ.. कंपकपाती ठंड में तुम्हारा झुर्रियों वाला चेहरा जब और सिकुड़ता है ना तो मुझे बहुत चिढ़न होती है।
तुम चली जाओ यही ठीक रहेगा.. मैं ठहर जाऊँ यही अच्छा है।
-झुर्रियां हैं मेरे चेहरे पर? अरे जाओ.. तुम्हारे पूरे ख़ानदान में भी मुझसे खूबसूरत कोई नहीं होगा। अकेले मरो.. मैं जा रहीं हूँ।
वही कर रहा हूँ.. जाओ।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa
तमाम रात कुफ़्रे-हिज़्र में गुजारी
और सुबह मुँह धोने को बैठ गए।
-बड़े चिड़चिड़े से लग रहे हो.. क्यूं क्या हुआ?
मत पूछो यार!
-ठीक है.. मत बताओ।
मतलब पूछो.. वो तो ऐसे ही कहने वाली बात है ना..
कि हमपे जानेमन कितने ग़म मुस्तैद रहते हैं
हलक में जान रहती है लब ख़ामोश रहते हैं।
-हुम्म्म्म! कबसे हुआ है ऐसा हाल?
पता नहीं! बस बेचैन रहता हूँ हर वक़्त.. उसकी याद आती है तो सौ परेशानी भी साथ आती हैं। अरे यार! मुझे तो चैन कभी मयस्सर ही नहीं।
-लेकिन याद तो कभी-कभी आती होगी?
तुम साँस लेती हो?
-ये कैसा सवाल है?
सवाल नहीं है ख़ातून ज़वाब है.. मुहब्बत की बातें किताब पढ़कर करने वाले अग़र चुप ही रहे तो ज्यादा अच्छा है।
-Shut up!
How dare you?
-मुहब्बत की है मैंने.. वो अलग बात है मैंने तुम्हारी तरह कोई तमाशा नहीं बनाया उसका।
मैं तमाशा बना रहा हूँ? अज़ीब बात मत करो।
-कुछ अज़ीब नहीं कहा है मैंने! दिमाग़ से सोचो और वाहियात ख़याल से बाहर निकल आओ जनाब।
तुम्हारे मुँह लगना ही नहीं है मुझे.. हर वक़्त ज्ञान बघारती रहती हो।
-मैं तुम्हें मुँह से लगाऊँगी कभी? जाओ यार मुँह धोकर शक्ल देखो अपनी.. और मैं क्या कोई भी तुम्हें मुँह लगाने से पहले सौ बार सोचेगा।
यार! तुम ताने मारना छोड़ो भी.. हद होती है किसी भी चीज़ की।
-कमाल करते हैं जनाब.. मुँह भी लगते हैं और इज्जत की फ़िक्र भी करते हैं.. हँसीं आती है.. ख़ैर..
ख़ैर क्या? बात पूरी करो।
-मुझसे नहीं होगी कोई भी बात पूरी.. मैं जा रही हूँ।
रूको!
-कोई मतलब नहीं अब रूकने का जानेमन।
जाओ फ़िर!
-तुम भी चलो।
नहीं.. मैं नहीं जाऊँगा। तुम जाओ।
-अकेला छोड़ रहे हो मुझे?
तुम्हें जाने की जल्दी है बस.. और कोई बात नहीं है।
-मैं रूक भी सकती हूँ.. रोक के तो देखो!
नहीं तुम जाओ.. कंपकपाती ठंड में तुम्हारा झुर्रियों वाला चेहरा जब और सिकुड़ता है ना तो मुझे बहुत चिढ़न होती है।
तुम चली जाओ यही ठीक रहेगा.. मैं ठहर जाऊँ यही अच्छा है।
-झुर्रियां हैं मेरे चेहरे पर? अरे जाओ.. तुम्हारे पूरे ख़ानदान में भी मुझसे खूबसूरत कोई नहीं होगा। अकेले मरो.. मैं जा रहीं हूँ।
वही कर रहा हूँ.. जाओ।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa
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